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Editorial: चुनाव में कोई भी जीते-हारे, ईवीएम-आयोग पर न लगें आरोप

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Nobody wins or loses the election

No matter who wins or loses the election, EVM Commission should not be blamed: हरियाणा में शहरी निकाय चुनाव के दौरान राज्य चुनाव आयोग का यह प्रयास उचित ही है कि राजनीतिक दलों को आमंत्रित कर बताया है कि ईवीएम यानी इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन के संबंध में जागरूक हों। आयोग का दावा है कि ईवीएम से कोई छेड़छाड़ नहीं की जा सकती। दरअसल, आज किसी भी चुनाव के समय ईवीएम से छेड़छाड़ के आरोप सामान्य बात हो गई है, वहीं चुनाव आयोग की भूमिका पर भी संशय जाहिर किया जाता है।

हरियाणा में लोकसभा चुनाव के दौरान विपक्षी कांग्रेस को पांच सीटें हासिल हुई थीं, लेकिन विधानसभा चुनाव में पार्टी अपने दावे के अनुसार जीती हुई बाजी हार गई, ऐसे में उसने इसका ठीकरा ईवीएम और चुनाव आयोग के माथे फोड़ दिया था। संभव है, आयोग को भी इससे सबक मिला है और उसने पहले ही इसकी तैयारी कर दी है कि ईवीएम और उसकी भूमिका पर सवाल न उठें। देश के किसी न किसी हिस्से में हर समय चुनाव होते रहते हैं या फिर उनका माहौल होता है। देश की आबादी भी बढ़ रही है, हर साल नए मतदाता जुड़ते जाते हैं। विपक्षी दलों की मांग है कि चुनाव बैलेट पेपर से कराए जाएं, लेकिन क्या यह आज के समय में संभव है। जब चुनाव ईवीएम से ही कराए जाएंगे तो फिर उसकी शुचिता की रक्षा करना सभी पक्षों का काम है।

गौरतलब है कि देश में हारने वाले दल जनादेश को स्वीकार करने से ही इनकार कर रहे हैं। हालांकि इसके प्रमाण हासिल नहीं हो पाते कि सच में ऐसी कोताही बरती गई, जिसकी वजह से विपक्ष की हार हुई। हरियाणा में हार के बाद महाराष्ट्र में भी विपक्ष विशेषकर कांग्रेस ने ऐसे आरोप लगाए थे, जिनमें चुनाव आयोग की भूमिका पर सवाल खड़े किए गए थे। हालांकि चुनाव आयोग ने इस पर विस्तृत जवाब दिया था। जाहिर है, आयोग के समक्ष ऐसे आरोप चुनौतियां है, और उनका जवाब उसे देना ही होगा। चुनाव आयोग से ही जुड़े पूर्व अधिकारियों का कहना है कि आयोग को अपनी भूमिका को स्पष्ट करना चाहिए। उनका कहना है कि राजनीतिक दलों के लगाए आरोपों में कहीं सच्चाई हो सकती है। वैसे यह सब कवायद तब है, जब सुप्रीम कोर्ट ईवीएम को हैक किए जाने के संबंध में स्पष्ट फैसला दे चुका है कि ऐसे आरोप संदिग्ध ही कहे जाएंगे। देश की संवैधानिक संस्थाओं पर भरोसा करना ही होगा।

कांग्रेस के नेताओं की ओर से विधानसभा चुनाव में हार के बाद जिस प्रकार से चुनाव आयोग की कार्यप्रणाली और ईवीएम पर सवाल उठाए गए, वे वास्तव में ही बेहद दुर्भाग्यपूर्ण थे। संभव है, अगर परिणाम कांग्रेस के पक्ष में आते तो ऐसी बातें और आरोप नहीं लगाए जाते। लोकतंत्र को जीवंत और निष्पक्ष बनाए रखने के लिए भारत निर्वाचन आयोग अथक प्रयास करता है और उसकी यह संजीदगी लोकसभा और विधानसभा के चुनावों में साफ प्रदर्शित होती है, लेकिन क्या यह उचित है कि उसकी भूमिका को ही अस्वीकार्य करते हुए चुनाव परिणामों को भी अस्वीकार कर दिया जाए।

निश्चित रूप से चुनाव आयोग की ओर से विपक्ष के आरोपों को अगर खारिज कर दिया गया है तो यह सही ही है। चुनाव आयोग ने हरियाणा के मामले में लगाए गए आरोपों का भी जवाब दिया था। इसमें आयोग का यह कहना बेहद गंभीर है और इसकी आशंका को बल देता है कि पार्टी के केंद्रीय नेतृत्व समेत उन सभी जिम्मेदार नेताओं के बयान बेहद आक्रामक और संविधान के विरुद्ध थे। आखिर यह किस प्रकार के बयान थे, जब यह कहा गया कि पार्टी को यह जनादेश स्वीकार नहीं है।  लोकतंत्र में अभिव्यक्ति की आजादी है और इसका हक प्रत्येक नागरिक को प्राप्त है। हालांकि चुनाव में करारी शिकस्त के बाद कांग्रेस के नेताओं की ओर से जिस प्रकार के बयान सामने आए, उनसे न केवल अभिव्यक्ति की आजादी का मजाक बना, अपितु चुनाव आयोग की शुचिता पर भी सवाल उठे। आयोग ने इस संबंध में कहा था कि कांग्रेस नेताओं का अस्वीकार्य वाला बयान लोकतंत्र में अनसुना है।

आयोग ने शब्दों का विशिष्ट चयन करते हुए यह भी समझाया कि किस प्रकार ऐसी टिप्पणियां वैधानिक एवं नियामक ढांचे के अनुसार अभिव्यक्ति लोगों की इच्छा को अलोकतांत्रिक तरीके से खारिज करने की दिशा में कदम है। हरियाणा में अब निकाय चुनाव सत्ताधारी भाजपा एवं विपक्ष के बीच छोटी सरकारों पर वर्चस्व का मौका बने हुए हैं। इन चुनावों में जीत और हार सत्ता पक्ष एवं विपक्ष की जनता के बीच लोकप्रियता को साबित करेगी। हालांकि चुनावों का निष्पक्ष एवं पारदर्शी तरीके से होना आवश्यक है और यही वजह है कि निर्वाचन आयोग ने इसके पूरे जत्न किए हुए हैं। संभव है, किसी भी पक्ष की हार के बाद ईवीएम को दोषी नहीं ठहराया जाएगा। 

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